छठ महापर्व
छठ महापर्व :
"छठ महापर्व" एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जो सूर्य देवता की पूजा के लिए आचार्य व्रत में मनाया जाता है। छठ पूजा का महापर्व विशेषकर भारत के उत्तरी क्षेत्रों में जैसे कि बिहार, झारखंड, और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। यह चार दिनों तक चलने वाला एक लम्बा और प्रतिष्ठानपूर्ण त्योहार है जिसमें सूर्य देवता की पूजा व्रती द्वारा की जाती है। नीचे छठ महापर्व के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं की विस्तृत जानकारी है:
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महत्व:
- छठ पूजा को सूर्य देवता की पूजा के लिए विशेष रूप से मनाया जाता है, जिससे जीवन का संरक्षण होता है और सौभाग्य, स्वास्थ्य, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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अवधि:
- छठ पूजा चार दिनों तक चलता है, जो दीपावली के छह दिन बाद आता है।
- प्रमुख पूजा के दिन तीसरे और चौथे दिन को मनाया जाता है।
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रीति-रिवाज:
- छठ पूजा के दौरान, व्रती विशेष रूप से तैयार किए गए छठ घाटों पर जाते हैं, जहां पूजा का आयोजन होता है।
- व्रती अपने धर्मिक और परंपरागत रूपों के साथ पूजा करते हैं और सूर्य देवता के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
छठ पूजा का त्योहार 17 नवंबर से शुरू हो रहा है. इस साल छठ पूजा 19 नवंबर को होगी. इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और इसी के साथ छठ पूजा (Chhath Puja 2023) का समापन व व्रत पारण किया जाएगा.
छठ पूजा का मुख्य दिन छठी मैया कहलाता है, जो महिलाएं अपने बच्चों के साथ सूर्य की पूजा करती हैं और उसके बाद पानी में स्नान करती हैं। छठी मैया की पूजा के बाद, लोग अपने घरों में प्रशाद बाँटते हैं और एक दूसरे के साथ खुशियां साझा करते हैं। यह त्योहार एक बड़े सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व का है और लोग इसे बहुत उत्साहपूर्वक मनाते हैं।
छठ पूजा की विधि :
छठ पूजा की विधि में कई रीतिरिवाज और परंपराएं होती हैं, लेकिन यहां कुछ मुख्य कदमों को बताया गया है जो छठ पूजा के दौरान अनुसरण किए जा सकते हैं:
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नहाना (स्नान): पहले दिन, व्रती व्यक्ति को स्नान करना चाहिए। इसके लिए नदी, झील, या स्नानघाट का चयन किया जा सकता है। स्नान के बाद व्रती को शुद्ध और साफ कपड़े पहनने चाहिए।
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खाद्य:
- व्रती को विशेष भोजन बनाना चाहिए जैसे कि चावल, दल, और सब्जियां।
- इस भोजन को सूर्योदय के समय और सूर्यास्त के समय ही खाना चाहिए।
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घाट पर पूजा:
- सूर्योदय और सूर्यास्त के समय, व्रती को अपने घर के पास किसी स्नानघाट पर पहुंचना चाहिए।
- स्नान के बाद सूर्य देवता की पूजा करनी चाहिए। पूजा में तिल, दूध, बनाने का आटा, और फल शामिल हो सकते हैं।
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अर्घ्य (जल अर्पण):
- सूर्य देवता को अर्घ्य देना चाहिए, जिसमें पानी, दूध, फल, और तिल हो सकते हैं।
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व्रत का आह्वान:
- व्रती को छठी मैया को अपने घर बुलाना चाहिए और उनसे अपने परिवार और समृद्धि की कामना करनी चाहिए।
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व्रत का उधारण:
- व्रती को छठी मैया के सामने अपना व्रत का उधारण करना चाहिए और उन्हें व्रत की सफलता के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
खरना :
छठ पूजा के दौरान "खरना" एक महत्वपूर्ण रस्म है, जो सामान्यत: त्योहार के दूसरे दिन, सूर्यास्त के समय मनाई जाती है। यहां छठ पूजा में "खरना" की रस्म को मनाने के कुछ मुख्य कदम दिए जा रहे हैं:
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सुबह की तैयारी:
- व्रती जिसे "खरना" की रस्म मनानी है, वह सूर्योदय से पहले उठता है।
- व्रती नहाकर नए और साफ कपड़े पहनता है।
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पूजा की तैयारी:
- व्रती एक छोटे और साफ स्थान को सजाता है जहां सूर्योदय के समय पूजा की जाएगी।
- उपयुक्त पूजा सामग्री, जैसे कि मिठा पान, फल, नारियल, कुमकुम, चावल, और दीपक, को तैयार किया जाता है।
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पूजा का आरंभ:
- सत्ताढ़ दिन के सूर्योदय से पहले, व्रती छठी माता की पूजा करता है।
- विशेष मंत्रों का पाठ और पूजा के बाद, छठी माता की आराधना की जाती है।
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उपवास खोलना:
- सत्ताढ़ दिन की पूजा के बाद, व्रती अपना उपवास सूर्य देवता के अर्पण किए गए प्रसाद के साथ तोड़ता है।
- उपवास खोलने के लिए विशेष प्रकार के आहार का सेवन किया जाता है, जैसे कि गुड़ की खीर, गुड़ के पुए, और फल।
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आहार साझा करना:
- उपवास खोलने के बाद, प्रसाद को परिवार के सदस्यों और दोस्तों के साथ साझा किया जाता है।
सूर्यास्त अर्घ्य (प्रदोष अर्घ्य):
"सूर्यास्त अर्घ्य" छठ पूजा के दौरान एक महत्वपूर्ण रीति है जो सूर्यास्त के समय, जिसे "प्रदोष अर्घ्य" भी कहा जाता है, की जाती है। इस रीति में प्रदोष काल में सूर्य देवता को जल अर्पित किया जाता है, मंत्रों का पाठ किया जाता है, और प्रार्थनाएं की जाती हैं। यहां "सूर्यास्त अर्घ्य" रीति की संक्षेप में जानकारी दी गई है:
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तैयारी:
- शाम को, सूर्यास्त के समय, व्रती (छठी) अर्घ्य की तैयारी करती हैं।
- व्रती एक उपयुक्त स्थान ढ़ूंढ़ती है, जैसे कि नदी किनारा, तालाब, या विशेष रूप से तैयार किए गए जल कुण्ड के पास।
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स्थापना:
- व्रती जल में खड़ी होती हैं, सूर्यास्त की दिशा में।
- इस मौके पर शाम के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है और बांस की टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से अर्घ्य के सूप को सजाया जाता है. इसके बाद, व्रती अपने परिवार के साथ मिलकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं और इस दिन डूबते सूर्य की आराधना की जाती है.
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मंत्र उच्चारण:
- जल में खड़ी होकर, व्रती सूर्य देवता के लिए विशेष मंत्रों का उच्चारण करती हैं।
- इन मंत्रों के माध्यम से व्रती सूर्य देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है और परिवार के सदस्यों के भले के लिए प्रार्थना करती हैं।
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पानी अर्पण:
- व्रती कलश को सूर्य देवता की ओर मोड़कर जल अर्पण करती हैं।
- इस जल को पावित्र माना जाता है और इसमें सूर्य देवता की कृपा और आशीर्वाद समाहित होता है।
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प्रार्थना:
- सूर्यास्त अर्घ्य के दौरान, व्रती परिवार के सदस्यों के लिए शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।
उषा अर्घ्य (सूर्योदय अर्घ्य):
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तैयारी:
- छठ पूजा के चौथे दिन व्रती उषा के समय सूर्य देवता को पूजने के लिए तैयारी करता है।
- एक शुद्ध और पावित्र कलश को गंगा जल या शुद्ध पानी से भरा जाता है।
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व्यवस्था:
- व्रती किसी जल स्तर या तालाब में खड़ा होता है, जैसे कि नदी, तालाब, या विशेष रूप से तैयार किए गए जल कुण्ड में।
- व्रती परिवार के साथ मिलकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं और इस दिन उषा के समय सूर्य की आराधना की जाती है.
- इसके बाद, छठ पूजा का समापन हो जाता है।
- व्रती और उनका परिवार और दोस्त इस दिन को खास तौर पर मनाते हैं और आपसी आदर-सम्मान के साथ भोजन करते हैं।
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